गर पत्थर हो दोस्तों ने मारी ऐ मेरे हसीं दोस्त
ज़ख्म के निशान तो मिटाए नहीं मिटते हैं
तेरी ख्वाहिशों में खोया हूँ इस कदर हर दम
ना आसमाँ की खबर है ना ज़मीन दिखती है
धुप में जलाता रहा हूँ खुद को एक उम्र तक शाम-ओ-सहर
तेरे ज़ुल्फ़ की छाँव चाहता हूँ जो किसी कदर नहीं मिलती है
हर रिश्ते से जुदा और आला है दोस्ती का रिश्ता
दोस्तों की याद तो बाद सितम के भी मिटाए नहीं मिटती है
वक्त को साथ लिये चलने की आरज़ू है अपनी
दुनियाँ आम लोगों को कब, कहाँ याद रखती है
रोने की कोशिशें भी नाकाम हो जाती है अपनी तो
तेरे नूर से रोशन सितारे और चाँद मुझे रोने नहीं देते हैं
जो इश्क के तूफां में बहते है मोहब्बत की कश्ती पर सवार
मिटाए नहीं मिटती जहाँ से इनकी हस्ती ऐसी हस्ती है
सारे जहाँ की नहीं अपने दिल की कहता हूँ मैं
तेरा साथ हो तो मुझे ये जहाँ हीं जन्नत दिखती है
एक उम्र तक भटका हूँ मैं खुदा की तलाश में मगर
जबसे तुम मिले मुझे हर ज़र्रे में जलवा-ए-खुदाई दिखती है
जब तुम हुए मेरे हमसफ़र ऐ रूहे जाना तब हमने जाना
इश्क हीं है जो इंसानों को जीना सिखाती है
दिल में दर्द की जगह कहाँ रही जब तुमसे दिल लगा लिया
आँखों में अश्क नहीं तेरी तस्वीर रहा करती है
एक तू मिल जाए तो हम जन्नत को ठुकरा दें
तेरे बाँहों के दायरे में मुझे जन्नत दिखा करती है |
इश्क़ का मुहाफ़िज़ हूँ मैं मुझे कफ़िरियत का इल्ज़ाम ना दो
हुस्न की रंगीनियों में मुझे जलवा-ए-खुदा नज़र आता है
--
This shayari was sent by Deepak Vashishta
ज़ख्म के निशान तो मिटाए नहीं मिटते हैं
ना आसमाँ की खबर है ना ज़मीन दिखती है
धुप में जलाता रहा हूँ खुद को एक उम्र तक शाम-ओ-सहर
तेरे ज़ुल्फ़ की छाँव चाहता हूँ जो किसी कदर नहीं मिलती है
हर रिश्ते से जुदा और आला है दोस्ती का रिश्ता
दोस्तों की याद तो बाद सितम के भी मिटाए नहीं मिटती है
वक्त को साथ लिये चलने की आरज़ू है अपनी
दुनियाँ आम लोगों को कब, कहाँ याद रखती है
रोने की कोशिशें भी नाकाम हो जाती है अपनी तो
तेरे नूर से रोशन सितारे और चाँद मुझे रोने नहीं देते हैं
जो इश्क के तूफां में बहते है मोहब्बत की कश्ती पर सवार
मिटाए नहीं मिटती जहाँ से इनकी हस्ती ऐसी हस्ती है
सारे जहाँ की नहीं अपने दिल की कहता हूँ मैं
तेरा साथ हो तो मुझे ये जहाँ हीं जन्नत दिखती है
एक उम्र तक भटका हूँ मैं खुदा की तलाश में मगर
जबसे तुम मिले मुझे हर ज़र्रे में जलवा-ए-खुदाई दिखती है
जब तुम हुए मेरे हमसफ़र ऐ रूहे जाना तब हमने जाना
इश्क हीं है जो इंसानों को जीना सिखाती है
दिल में दर्द की जगह कहाँ रही जब तुमसे दिल लगा लिया
आँखों में अश्क नहीं तेरी तस्वीर रहा करती है
एक तू मिल जाए तो हम जन्नत को ठुकरा दें
तेरे बाँहों के दायरे में मुझे जन्नत दिखा करती है |
इश्क़ का मुहाफ़िज़ हूँ मैं मुझे कफ़िरियत का इल्ज़ाम ना दो
हुस्न की रंगीनियों में मुझे जलवा-ए-खुदा नज़र आता है
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This shayari was sent by Deepak Vashishta
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